1 Date: 13-03-18 When ideology overcame sense RTE imposes a bureaucratic, grotesquely inefficient regime starving our children of good education Geeta Kingdon,[The writer is Professor of Education Economics at University of London and President, City Montessori School, Lucknow.] The road to hell is paved with good intentions. It is no hyperbole to say that the well-intentioned Right to Education (RTE) Act, 2009, has been a disastrous experiment. Contrary to its avowed intent, its effect has been to deprive millions of children of their right to education by closing down schools. Delhi s AAP government has used Sections 18 and 19 of the RTE Act to justify closing all unrecognised private unaided schools, which are the low fee schools serving the poor and lower middle classes. Many other states have been doing the same, more quietly. Section 18 mandates that private unaided schools must obtain government licence ( recognition ) by fulfilling the stipulated infrastructure and pupil-teacher ratio norms; Section 19 mandates the closure of schools that do not obtain recognition. State governments have added many further conditions for recognition. While these strictures are supposedly quality related, in fact this inputs-focused approach is already discredited internationally in hundreds of studies and meta-analyses. And even national data show that raw learning levels of children in these schools are twice (in some states thrice) as high as in government schools. In reality, there are less exalted reasons why state governments hide behind Section 19 to curb private education. Firstly, it is politically expedient. Section 12 of the Act (which obliges all private schools to give at least 25% of their seats to disadvantaged children) has accelerated the pre-existent trend of the emptying of government schools, embarrassing state governments. In 2015-16, Rajasthan, Maharashtra and Chhattisgarh alone closed about 24,000 government schools where total school enrolment had fallen below 10 students. Such closures expose government incompetence, so it is expedient for states to forestall such embarrassment by suppressing the low fee unrecognised schools, coercing poor children to fill government schools which have higher teacher absentee rates. The horrendous consequences for children s learning levels, and ultimately for productivity and national growth, are nowhere in the calculation. Secondly, it is convenient for government to close private schools to avoid the burden of doubleexpenditure: maintaining empty school buildings and highly paid teachers (average per-pupil expenditure on salary alone is Rs 2,300 pm) in government schools and, again, reimbursing private schools for educating the children who have abandoned the government schools.the reason for this unholy mess is that the RTE Act s framers disregarded the evidence on the emptying of government schools, and were in denial about the pitiably low learning levels, which were driving parents to private
2 schools. They merrily focussed on ensuring access to schooling, virtually redundant since enrolment was already 96% in 2009. Paradoxically, Section 19 of the Act exempts government schools from penalties for violating the infrastructure norms, so it is not surprising that only 6.4% of them actually fulfilled the norms by 2016 (as per the HRD minister s reply to Parliament in August 2016). Thus the Act shelters infrastructuredeficient government schools from closure, and applies double standards. The Act has another monumental flaw: its Section 6 obligates state governments to establish neighbourhood public schools in all localities, legally binding states to create more of the kind of schools people have been abandoning. Official U-DISE data show that from 2010 to 2016, enrolment in government elementary schools fell by 1.8 crore (and in recognised private schools rose by 1.7 crore); average enrolment fell from 122 to a mere 103 pupils per government school; and the number of small government schools (those with a total enrolment of 50 or fewer students) rose from 3,13,169 to 4,17,193! The average school size in these 4.17 lakh schools was a mere 28 students per school making them monstrously unviable, both pedagogically and economically. The total teacher salary bill in these 4.17 lakh small government schools was Rs 56,497 crore in 2016-17 (data from NUEPA). RTE s insistence on creating more government schools when such schools have been rapidly emptying has led to grotesque inefficiency, and it constitutes the ruinous triumph of ideology over sense. Many state governments have not implemented Section 12 of the Act to give poor children access to private schools. Uttarakhand and Maharashtra governments lament that they cannot afford to pay hundreds of crores rupees of reimbursements owed to private schools; Karnataka government is blaming Section 12 for the privatisation of education since their government schools are rapidly emptying. Some have called Section 12 anti-hindu since it applies only to the non-minority (mainly Hindu) schools. Private schools are no happier with Section 12, complaining of low reimbursement rates, and of delays, deficits and corruption in the reimbursement process. They also fear political capture, official interference, loss of autonomy, and consequent reduction in quality of education. The Act is premised on mistaken hunch-driven diagnoses and has prescribed the wrong (inputs-based) remedies, when the crying need is for accountability-raising reform that exposes government schools to the rigours of competition from private schools. Many countries have benefited by giving public funding (to government and private schools) as vouchers to parents, which empower the latter to hold schools accountable. The imminent National Education Policy must boldly recommend the scrapping of the harmful Right to Education Act, 2009, and suggest policies based on national and international evidence on what has worked to improve children s outcomes, rather than on ideology or experimentation. The stakes are high for crores of Indian children, and for the country s growth and prosperity. पड़ स म क च न क उदय क अ त क आर भ Date: 13-03-18 न तन पई
3 च न म र ट रप त श चन फ ग व र र ट रप त पद क क यर क ल क अव ध स म सम त करन क प र त व क ब द जन श द व लय क स सर कर दय गय उनम 'म असहमत ह ' भ श मल ह य न श चन फ ग र ट रप त पद पर बन रहन क लए जन समथर न ज ट न क क रम म इस हद तक ज सकत ह च न म न शनल प प स क ग र स क प र त न धय न र वव र क प इ च ग म अपन स ल न ब ठक क जसम स वध न स श धन क म ज र द गई य स श धन श चन फ ग क उस थ त म पह च द ग जसम एक समय म ओ स त ग थ और जसम रहन त ग य ओ फ ग क गव र नह थ य जसस वह बचत रह उसक स थ ह त ग य ओ फ ग क द र आ धक रक त र पर सम त ह ज एग श यद तब च न क उदय क अ त क श आत क आश क भ पहल क त लन म य द ह ग च न क उदय क अ त क ल कर समय-समय पर लख भ गय ह और गलत भ स बत ह आ ह ल कन च ह ज भ इन ल ख न ग डर न च ग ज स च न वर ध अम रक त भक र क प र स द ध भ द ह और अम र भ बन य ह बहरह ल, म यह क ई अन म न नह प र त त कर रह ह ब क म र ल य ह आपक च न क पर भव क बढ़त ज खम स अवगत कर न च न क जबरद त र जन तक प रग त और भ र जन तक उभ र क ध म पडऩ य उसक पर भव क आश क क सबस बड़ वजह यह ह क श चन फ ग त ग य ओ फ ग क सफलत क स त र स न त त ड़कर उन न तय क अपन रह ह जनम म ओ स त ग न क म रह थ न त व प रवतर न क स थ गत प र क रय क य ग करन उस कड़ क सबस नव नतम उद हरण ह त ग क इ तह स क प ठ और म ओ क त र सद श सन श ल, जसक क रण च न क भय कर क ट सहन पड़, कर ब 3 कर ड़ ल ग क म त ह ई और च न क प र त य क त ज ड प भ रत स भ कम रह, उ ह अपन न क क रम म वह ल कत त रक यव थ और एक य क त क श सन म स त लन क यम करन क ज जहद म रह गए वह क य न ट प ट र क अध न च न म एक दल य श सन च हत थ सन 1989 म य न आन मन च क पर घट घटन इसक उद हरण ह पर त इसक सम तर वह एक स म हक न त व क हम यत थ जह अ धक र क ब टव र ह और एक द सर क क म पर नगर न रखत ह ए स त लन भ ह ल कन हत और म नक स झ ह स ग प र क न त ल क आन य क व टकन क यह यव थ पस द थ जह क डर नल यह तय करत थ क क न उन पद पर आएग और फर उनम स एक क प प क प म च न लय ज त अ य ल ग यव थ क ब र म च ह ज भ स च ल कन च न क लए यह सन 1979 स 2010 तक क रगर रह यह वह द र थ जब प ट र क पहल ऐस मह स चव क च नन क ल कर भय कर आ त रक स घषर ह आ जस त ग व र नह च न गय थ जन ल ग न प रव र क म खय क नधन क ब द वह छडऩ व ल प रव रक वव द क कर ब स द ख ह ग उनक अ द ज ह ग क यह क स ह त ह यह फकर बस इतन ह क इस म मल म प रव रक स म र य क वभ जन स भव नह थ श चन फ ग न इस क पत ह ई यव थ क स भ लन और सह र द न क बज य इस व त करन क नणर य लय उ ह न यह क म जस ढ ग स कय वह भ म ओ क य द दल त ह न क त ग क कठ र नय त रण, श षर प ट र न त ओ क ब द बन न और उनक प रव र क सद य पर अ य च र करन ऐस ह क छ तर क ह फ डर म ल क ल क प र फ सर क लर म नर क एक नई कत ब म कह गय ह क च न क आ थर क स ध र क प रभ षत करन व ल तम म स क तक अब गर वट पर ह य ह थरत, स थ गत प ट र श सन, उ च आ थर क व घ और श ष व व क प र त ख ल पन
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6 क सज द कमर क बढ़त घटन ओ क र कन म क रगर ह ग? यह एक ऐस प र न ह, जस पर य पक चच र करन क ज रत ह स म जक क यर कत र ओ क एक धड़ यह म नत ह क म य द ड क प र वध न स प ड़त ब च क ज वन क खतर ह सकत ह, वह म नव धक र समथर क हम श स ह म य द ड क अपर ध सम त क क रगर र त नह म नत ह उ ल खन य ह क भ रत म आज तक सफर एक य क त क द कमर और ह य क म मल म फ स पर लटक य गय ह 14 स ल तक चल म कदम और व भ न अप ल क ख रज ह न क ब द फरवर 2004 म प चम ब ग ल क धन जय चटज र क क लक त क एक 15 वष र य क ल छ त र क स थ द कमर और ह य क म मल म फ स ह ई थ इस स य क झ ठल य नह ज सकत क पछल क छ वष म ब चय क स थ द कमर क म मल म त ज स इज फ ह आ ह र ट र य अपर ध रक डर य र क 2016 क आ कड़ बत त ह क उस एक स ल म ब च क स थ द कमर क 19,765 म मल दजर कए गए ह, ज 2015 क त लन म 82 प र तशत य द ह यह यह भ ग र करन व ल ब त ह क वम र कम शन क अन श स ओ क ब द क न न क क फ सख त बन य गय, इसक ब वज द द कमर क म मल बढ़ रह ह अभ भ बल क र क 95 हज र म मल व भ न अद लत म ल बत ह अब अगर म न भ लय ज ए क म य द ड क भय अपर ध क डर त ह, त व स र अपर ध, जन पर वष स म य द ड क प र वध न ह, श यद घ टत ह नह ह त य न यह तय ह क अगर ब चय स द कमर पर फ स क सज क प र वध न द श भर म ल ग ह भ ज त ह, त इसस अपर ध म कम नह आन व ल, क य क सज क व प नह, द डत ह न क प र क रय ह अपर ध क र क सकत ह क छ सव ल ह क य न ब लग क द क मर य क फ स क प र वध न ह न पर गव ह, अप ल और क न न क द वप च भ बदल ज ए ग? क न न क व स कर ग लय यक यक च ड़ ह ज ए ग, जनस नकलकर आज तक अपर ध बचत आए ह? दरअसल सम य क न न म नह, सम य उसक प लन म ह अभ द कमर क 95 हज र म मल क टर म ल बत ह और इनम स य द तर द कम र आ व त ह क क न न क प च द गय क चलत व छ ट ह ज ए ग ऐस म, अगर ग र करन ह, त इस ब त पर करन च हए क क स य यप लक, प लस और प रश सन क य द स य द जव बद ह बन य ज ए क व इन म मल क ग भ रत स ल द कमर क म मल क थ न म दजर कर न स ल कर, अद लत क दरव ज तक पह चन म त ख स समय लगत ह ह, कई ब र त प ड़त क अपन स थ ह आ अपर ध स बत करन क ज जहद म ह कई स ल लग ज त ह उ ल खन य ह क द ल म एक आठ मह न क ब च क स थ ह ई बबर रत क घटन क ब द द यर क गई जन हत य चक म प क क न न क तहत 12 स ल स कम उम र क ब च क स थ द कमर क म मल म ज च और स नव ई क लए उ चत दश - नद श तय करन क ग ह र लग ई गई ह, जसस ज च व स नव ई प रथम ज च रप टर दजर ह न क छह मह न क भ तर प र ह सक अगर आन व ल समय म वतर म न म ल ग द कमर क क न न क भ ग भ रत और समय-स म क ब यत क स थ ल ग करन क प रय स कय ज त ह, त क फ हद तक स भ वन ह क द कमर क घटन ओ म कम आए क य कहत ह द लतप र क कह न Date: 12-03-18
7 आल क र जन, प वर म ख य स चव, उ तर प रद श क द र सरक र न स ल 2022 तक कस न क आय क द ग न करन क एक च न त प णर अ भय न श कय ह तम म तरह क रणन त बन न क प र त व दए ज रह ह, पर हम एक ऐस म ह ल बन न च हए, जसम कस न म प रग तश ल स च वक सत ह और व अपन फसल पर ऊ च म न फ प सक यह म ऐस ह एक कस न क कह न आपस स झ कर रह ह, जस बदल व क व हक कहन य द उ चत ह ग र म सरन वम र एक श त व स य कस न ह, जनक इर द ख त और फसल चक र म तकन क क इ त म ल स क ष म बदल व ल न क ह उ ह न महज एक एकड़ जम न क स थ 1990 म इस दश म कदम बढ़ य थ, और आज उनक सफर म हज र कस न ज ड़ च क ह, ज उ तर प रद श क तम म जल म क ल मल कर 80,000 एकड़ जम न पर ख त कर रह ह ख त क उनक इस म डल न न सफर कस न क आमदन बढ़ ई ह, ब क उनक ज वन- तर भ ब हतर बन य ह र म सरन वम र क स थ पहल म ल क त म झ अब भ य द ह म तब उ तर प रद श म क ष उ प दन आय क त थ वह कस न क उस प र त न धम डल क ह स बनन क अन र ध ल कर म र प स आए थ, जस ग जर त ज कर वह क क ष यव थ और ख त क तर क क अ ययन करन थ म झ उनक आ म व व स न क फ प रभ वत कय तब उ ह न कह थ, म झ सरक र स एक प स नह च हए म अपन हव ई टकट ख द ल ल ग और ठहरन क इ तज म भ ख द कर ल ग वह प र त न धम डल म श मल कए गए और व कई उ ह न सरक र स एक प स भ नह लय यह तक क अभ ह ल ह म जब म न उनस प छ क क य उ ह न अपन सफलत क कह न क श द म ढ ल ह, त उ ह न व व स क स थ कह, ग गल पर म र व बस इट द खए आपक प र ज नक र मल ज एग असल म, आ थर क आज द न र म सरन क स म जक व र जन तक प स सशक त बन य ह इसस उनक ज वन तर म जबदर त व द ध ह ई ह उ ह न अपन य त र क श आत फसल चक र, फसल क प टनर और प ध क ब च क ख ल जगह म नए-नए प रय ग क स थ क ख त म तम म तरह क पर क षण कए स ल 1995 म उ ह न क ल व टम टर क ख त श क, क य क अपन अ ययन स उ ह न यह समझ लय थ क इन फसल स उनक लए नकद आमदन क दरव ज ख ल सकत ह ख त क त र-तर क क बदलकर क र प इन व शन (फसल म नव च र) करन हम श स स ख-सम द ध और ज वन तर म ब हतर स न चत करत ह र म सरन क इन व शन न भ उ तर प रद श क ब र ब क, लख मप र ख र, स त प र और स त नप र क कस न क क फ फ यद पह च य र म सरन क क ल क र त इतन सफल रह ह क अब क श ब तक आपक ऐस कई कस न दख ज ए ग, ज क ल क ख त करत ह क ल म श द ध ल भ प र त एकड़ च र ल ख पय ह क ल क ब गव न इस लए म न फ क स द बन सक, क य क फसल चक र व ख त क टश क चर क अपन य गय र ट न ग (प ध क ऊपर ह स क क टन और जड़ क जम न म ह छ ड़ द न ) क इ त म ल करक उ ह न फसल क अव ध कम क और एक नय मत फसल चक र स न चत कय इस ख त क तहत एक एकड़ म कत र क ब च छह फ ट क द र रखत ह ए क ल क 3,000 बरव र प ज त ह इसक ब द, पहल फसल क प ध क गरदन क ऊ च ई तक क ट दय ज त ह, जसस ख द क इ त म ल घटकर आध ह ज त ह र म सरन न ह अ य कस न क इस तकन क क प र शक षण दय ह वह गवर क स थ बत त ह, हम ब ज र ज न क ज रत नह ह त, ब ज र हम र दरव ज तक आत ह व कई सच यह ह खर द र उनक ब ग तक ख द आत ह र म सरन यह स न चत करत ह क सभ कस न क अ छ म न फ मल
IMPORTANT NEWSCLIPPINGSS (13-Mar-18) 8 सफलत क यह कह न टम टर, आल और म थ क ख त म भ द हर ई गई ह, जसस कस न क ज वनश ल म उ ल खन य स ध र ह आ ह लखनऊ म न जम ट एस सएशन क स थ इ ट य ट ऑफ क -ऑपर टव म न जम ट रसचर ऐ ड ट र न ग न एक अ ययन कय थ, जसक नत ज उ स हत करन व ल ह न कषर क म त बक, 40.9 फ सद कस न न घर क म लक बनन क ब त कह 19.6 फ सद स म त व 27.3 फ सद छ ट कस न न ख खत क लए जम न खर द क ल 27.7 फ सद कस न न क ष भ म खर द 27.77 फ सद स म त और 36.4 फ सद छ ट कस न पट ट पर जम न ल न लग स फ ह, इन कस न क लए ख त फ यद क स द स बत ह ई ह इतन ह नह, 27.7 फ सद स म त, 36.4 फ सद छ ट और 66.7 फ सद मधयम कस न न अपन प रव र क लए नए घर बनव ए क ल मल कर, 84.8 फ सद कस न न अपन ज वन तर म उ न त क य द तर कस न क कहन थ क व अब ब हतर प यजल स वध क इ त म ल करन लग ह 84.8 फ सद कस न न बत य क उनक प रव र क श क ष णक तर बढ़ ह 78 फ सद स म त और 72.7 फ सद छ ट व म यम कस न क पह हच ब हतर च क स स वध तक ह न लग ह ह 68.2 फ सद कस न क घर म ग स पह च च क ह 70 फ सद क कर ब कस न न कह क आध नक तकन कक क इ त म ल स न सफर उ ह अ धक स म जक पहच न मल, ब क शहर क स थ उनक ज ड़ व भ बढ़ नत जतन, द लतप र ग व व व तर पर पहच न ज न लग ह क ष म ज वन-य पन क ब हतर अवसर मलन क क रण इन इल क क ख तहर मजद र न भ शहर क पल यन ब द कर दय ह यह एक म क क र त ह, जसक द यर अब नजद क इल क म बढ़ चल ह र म सरन न इसक पहल क और द दशक म अपन इल क क आ थर क त व र बदलकर रख द यह चम क र तकन क, ब हतर क ष तर क क चयन, इन व शन, आ म व व स, ब गव न फसल क ख त, फसल चक र और पट ट पर जम न ल न स स भव ह सक यह उद हरण बत त ह क स भ वन ओ क द यर कतन बड़ ह र म सरन सरक र क भ ऐस करन क प र रत करत ह ख त क यह म डल सफर ख त - कस न क फ यद म द नह बन त, ब क कस न क वह स म न भ द त ह, जसक व हकद र ह ज हर ह, इस तरह क बदल व अ नद त ओ क आमदन द ग न करन क सपन स क र कर सकत ह Date: 12-03-18 Reshaping Indo-Pacific India, France are taking more responsibilities in partnership with each other, transcending old frameworks and new faultlines Editorials The expansive prospect for India s strategic partnership with France unveiled in Delhi on Saturday by Prime Minister Narendra Modi and the visiting President, Emmanuel Macron, underlines the growingg importance of middle power coalitions that transcend the traditional alliance frameworks and new geopolitical fault lines. Amidst America s uncertain external orientationn and China s effort to reshape the global order, second-tier powers like India and France seek a greater say in world affairs through more
9 intensive collaboration. In that process, they are breaking down the old stereotypes of East versus West and North versus South. In taking the lead on mitigating climate change, through the International Solar Alliance, India and France are demonstrating their potential for shared global leadership. France, a long standing military ally of the United States, is also looking beyond NATO to forge security partnerships with Asian democracies like India. Delhi, in turn, appreciates that its quest for a larger role in the world can t be founded in exclusive security partnerships with either Russia or America. Nor does it want to cede Asia and the world to the rigidity of a new bipolar framework between the US and China. By taking more responsibilities in partnership with each other, Delhi and Paris improve their relative national positions in a changing world. The Indo-Pacific has emerged as the new arena for cooperation between Delhi and Paris. Although India s strategic partnership with France is the oldest and dates back to the late 1990s, it lacked a regional anchor. The focus was mainly on expanding bilateral defence and high technological cooperation. With their long standing national advantages in the Indo-Pacific threatened by the global power shift, they have chosen to band together. Their shared maritime vision seeks to uphold the law of the sea in the Indian Ocean, prevent the kind of military unilateralism that has come to grip the Western Pacific, secure the sea lines of communication, respond to humanitarian disasters and promote sustainable blue economy. To pursue these objectives, Delhi and Paris have agreed on greater political coordination in the region, mutual logistical support and seamless interoperability between their security forces. This cooperation will not be exclusive but will include engagement with other partners big and small in the littoral. Beyond their effort to influence the high politics of the Indo-Pacific, Delhi and Paris have agreed to address a huge gap in the bilateral relationship the limited contact among the peoples of the two countries. Macron has promised to make France a major destination for Indian students, engineers, scientists and artists. At a time when borders are closing elsewhere in the world, this is a huge opportunity for the new generation of globalising Indians. Macron s unbridled enthusiasm for India connects with his effort to rejuvenate France and revitalise Europe. It is upto Delhi to make the best of this moment.